Supreme Court of India, सुप्रीम कोर्ट ने अनुच्छेद 20 का आधार लेते हुए नए नियमों के अनुसार कम सजा सुनाई है। 1954 के खाद्य अपमिश्रन निवारण अधिनियम के तहत उल्लंघन के मामले में एक महत्वपूर्ण निर्णय दिया है। न्यायमूर्ति सुधांशु धूलिया और न्यायमूर्ति प्रसन्ना बी इन्होंने इस फैसले की तरफ ध्यान आकर्षित किया है।
Supreme Court of India:
आजकल शहर और गांव के हर स्थान पर छोटे-मोटे दुकान है। जिस में पैकेट बंद खाने की चीज मिलती है। इनमें से अधिक तरबार इन पैकेट पर निर्माता का नाम नहीं होता है। ना ही एक्सपायरी डेट होती है। और ना ही उस खाद्य सामग्री की जानकारी होती है। किसी भी खाद्य पदार्थ की पैकेट पर जानकारी नहीं देना यह नियमों का उल्लंघन होता है। और इसमें कड़ी शिक्षा भी हो सकती है।
ऐसी एक घटना 24 साल पहले कोलकाता में हुई थी नियमों का उल्लंघन करने के कारण उसे व्यक्ति को दोषी माना गया था। और 7 मार्च 2024 को उसी का फैसला सुनाते हुए उसे व्यक्ति को 50000 जुर्माना भरना पड़ा है।
क्या है पूरा मामला :
सुप्रीम कोर्ट ने यह 24 साल पुराना मामला होने के कारण और दुकानदार की आयु 60 साल होने के कारण 3 महीने की जेल की शिक्षा रद्द कर दी है और 50000 जुर्माना तय कर दिया है। इस मामले में निकले अदालत से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक इस दुकानदार को दोषी करार दिया है। खाद्य अपमिश्रन निवारण कानून ने 3 महा को जेल और ₹1000 जुर्माना तय किया था। इसके अलावा एक पार्टनर को 2000 जुर्माना की सजा दी गई थी। यह फैसला अब न्यायमूर्ति सुधांशु धूलिया और न्यायमूर्ति प्रसन्ना बी इन्होंने 7 मार्च 2024 को सुनाया है।
खाद्य पदार्थ में कोई भी मिलावट नहीं थी!
खाद्य पदार्थों में कोई भी मिलावट नहीं थी लेकिन बंद पैकेट बचने के कारण और उसे पैकेट पर कोई भी जानकारी नहीं होने के कारण इस दुकानदार को दोषी माना गया। और उसकी सजा उनको 50000 जुर्माना सुनाया गया है। बंद पैकेट पर ब्रांडिंग नहीं होने के कारण यह दुकानदार दोषी पाया गया है।
क्या कहा सुप्रीम कोर्ट ने :
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि जब अपराध हुआ था तब 1954 के खाद्य अपमिश्रन निवारण अधिनियम लघु था लेकिन अब यह नियम रद्द हो चुका है। और उसकी जगह पर खाद्य सुरक्षा और मानक कानून 2006 लागू हुआ है। नए नियमों के अनुसार मिस ब्रांडिंग पर धारा 52 के अनुसार 3 लाख तक का जुर्माना हो सकता है। लेकिन इसमें कैद की सजा का कोई भी प्रावधान नहीं है। ऐसा सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाते वक्त कहा है।
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